मंगलवार, 12 जनवरी 2010

मैं खुद किसी महफ़िल से कम नहीं...

गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते
हम रात में छुपकर कहीं बाहर नहीं जाते



बचपन में किसी बात पर हम रूठ गए थे
उस दिन से इसी शहर में है घर नहीं जाते



एक उम्र यूँ ही काट दी फ़ुटपाथ पे रहकर
हम ऐसे परिन्दे हैं जो उड़कर नहीं जाते



उस वक़्त भी अक्सर तुझे हम ढूँढने निकले
जिस धूप में मज़दूर भी छत पर नहीं जाते



हम वार अकेले ही सहा करते हैं ‘राना’
हम साथ में लेकर कहीं लश्कर नहीं जाते

8 टिप्‍पणियां:

  1. गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते
    हम रात में छुपकर कहीं बाहर नहीं जाते
    Wah! Harek pankti dohrayi ja sakti hai!

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  2. वाह! तबियत प्रसन्न हो गयी आज सुबह-सुबह!
    क्या नायब गजल पढ़ने को मिल गयी!
    एक-एक शेर के तेवर अपनी कहानी खुद कह रहे हैं.
    ..बधाई.

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  3. बहुत खूब!


    आज सुबह ६ बजे आपके नाम की घोषणा:

    http://sameeranandbaba.blogspot.com/

    सादर

    समीर लाल

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  4. बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
    किसने लिखी है ?इसके शायर का नाम भी दिया करें..

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  5. bahut hi sundar ghazal hai
    aabhaar.


    priy gautam ji
    aapka yaahoo mail kaam nahi kar raha hai.
    aapko sreshth srajan ke vijeta banne ke sammaan men certificate bheja gaya tha kintu mail fail ho gaya.
    aap kripya apna g-mail address bata den jisse aapko certificate bheja ja sake.
    thanks

    creativemanch@gmail.com

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  6. मैंने तो आज ही देखा आपका ये ब्लॉग...ग़ज़ल बहुत अच्छी है...बहुत सुन्दर...बधाई.

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