निकल जाते हैं सपने
किसी अनन्त यात्रा पर
बार-बार की यातना से तंग आकर
गीली आँखें
बार-बार पोंछी जाएँ
सख्त हथेलियों से
तो चेहरे पर ख़राशें पड़ जाती हैं
हमेशा के लिए !
प्यास से जो खुद़ तड़प कर मर चुकी है वह नदी तो है मगर सूखी नदी है। तोड़कर फिर से समन्दर की हिदायत हर लहर तट की तरफ को चल पड़ी है।
हमेशा के लिए !
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किसी अनन्त यात्रा पर
बार-बार की यातना से तंग आकर
Harek kshanika sundar aur arthpoorn hai!Pahli baar aayi hun aapke blogpe! Badi khushee huee!